जिन लोगों को उन दिनों की याद है, वे भूले नहीं होंगे कि उस समय संजय गांधी को 'युवा हृदय सम्राट' के विशेषण से पुकारा जाता था। हम लोगों को उनकी सभा की खबर मिली तो हैरानी और परेशानी का भाव आया। इंदिरा गांधी के मौजूद रहते संजय गांधी की सभा? क्या वह कोई खास घोषणा करने वाले हैं? क्या कहेंगे, आज के हालात पर बोलेंगे, इमरजेंसी पर चर्चा करेंगे? सभा के लिए 4या 4.30 बजे का समय निर्धारित था। भरतपुर के कुछ पत्रकारों के साथ मैं भी सभास्थल पर पहुंच गया। भरतपुर से बाहर का कोई भी पत्रकार इस पूरे दौरे में दिखाई नहीं दिया था। हमारे वहां पहुंचने के समय मुश्किल से 50-60 लोग सडक़ पर बिछी दरियों पर बैठे थे। सभा में शामिल होने वालों की संख्या बेहद धीरे-धीरे बढ़ रही थी। थोड़ी देर में ही राष्ट्रीय ध्वज लगी तीन-चार कारें वहां आ पहुंचीं। मैं अपनी आदत के अनुसार स्टेज के पीछे ही मौजुद था। स्टेज बहुत ही छोटा था और शायद काफी जल्दवाजी में बनाया गया था। 'युवा हृदय सम्राट' पधार चुके थे और उनके साथ थे राजस्थान के मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी और यूपी के मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी तथा एक-दो केंद्रीय नेता व प्रोटोकोल निभाने वाले अधिकारी। स्टेज छोटा था और उस पर चढऩे के लिए कोई भी उचित व्यवस्था नहीं की गई थी। पूरी स्टेज का साइज ज्यादा से ज्यादा 6 गुना 6 फीट रहा होगा ; स्टेज एक पेड़ के साथ बनाया गया था यानी उस करीब छह या सात फीट ऊंचे मचान पर पहुंचने के लिए पेड़ का ही सहारा लिया जा सकता था। लेकिन उस पर चढऩे की कोशिश करने पर खुरसट आने या फिसल जाने का डर था। इसके आगे का दृश्य बड़ा अजीब था। एक मुख्यमंत्री ने 'युवा हृदय सम्राट' की चप्पलें हाथ में लेकर करीने से रखीं, दूसरे मुख्यमंत्री ने 'पुरुषार्थ' दिखाते हुए उन्हें चढऩे के लिए अपना कंधा पेश किया, फिर जो मुख्यमंत्री स्टेज के ऊपर खड़े थे, उन्होंने उनका पूरा वजन संभालते हुए उनको खींचा। इसके बाद क्या हुआ?
'युवा हृदय सम्राट' बोले - ''भाइयों, आपके भरतपुर में बड़ी प्यारी-प्यारी चिडिय़ां आती हैं, वो दूसरे देशों से भी आती हैं, हम आज उन्हीं को देखने यहां आए थे। पक्षी बहुत प्यारे होते हैं। आप उनका ख्याल रखियेगा, हम फिर आऐंगे। हम भरतपुर के लिए भी कुछ करने का विचार करेंगे। धन्यवाद, जयहिंद!
जहां तक मुझे याद है, यह खबर 'संजय गांधी की सभा' शीर्षक से छपी थी। पेज एक पर यह दो छोटे पैराग्राफ की खबर थी, लेकिन इसमें मुख्यमंत्रियों की भूमिका का कोई जिक्र नहीं था। उस समय हो सकता भी नहीं था। बाद में मैंने पत्रकारिता की अपनी एक पुस्तक की भूमिका में इस घटना का उल्लेख करना चाहा, पर प्रकाशक ने अनुमति नहीं दी।
सभा के बाद यह समझ पाने में देर नहीं लगी कि यह आयोजन कांग्रेस के उन चाटुकारों की कोशिशों का नतीजा था जिन्होंने श्री संजय गांधी को 'युवा हृदय सम्राट' आदि विशेषणों से अलंकृत किया था। इसके बाद संजय गांधी से मेरी आखिरी मुलाकात नई दिल्ली की 12, विलिंगडन क्रिसेंट स्थित श्रीमती इंदिरा गांधी के निवास के रूप में प्रयुक्त हो रही छोटी सी कोठी में हुई। ये बात 23 दिसंबर, 1979 की है। मैं श्रीमती गांधी का इंटरव्यू लेने गया था और उनके वुलाबे के इंतजार में था कि पता नहीं किधर से संजय गांधी दो ऊंचे कद के बड़े बलवान कुत्तों के साथ आए और वहां मौजूद एक हट्टक ट्टे पहलवान से आदमी से मेरे बारे में कुछ दरियाफ्त किया। यह पता चलने पर कि मैं आगरा से हूं और मैडम का इंटरव्यू लेने के लिए आया हंू, वह नजदीक आकर पूछने लगे, अच्छा आगरा से आप? बताइए, वहां हमारी युवक कांग्रेस कैसी चल रही है? मैंने उस समय सक्रिय दो युवक कांग्रेसियों के नाम उनको बताए जो तब सचमुच काफी मेहनत से संगठन के काम में लगे हुए थे। दोनों को अगले चुनाव में टिकट भी मिला, लेकिन पार्टी में कद बढ़ते ही दूसरे नेताओं की तरह ही उन्होंने भी मठ बना लिए। अब राजनीति में उनका सूर्य अस्त हो चुका है, पर कारोबारी वे बन चुके हैं। बहुत थोड़े दिन बाद ही दिल्ली में जहाज उड़ाते हुए एक हादसे में वे काल कवलित हो गये। श्री खुशवंत सिंह ने ठीक ही लिखा था—छोटे भाई ने राजनीति करते हुए जहाज उड़ाने की कोशिश की और अकाल मृत्यु का शिकार बन गया; जबकि बड़े भाई ने पायलट होते हुए राजनीति करने की कोशिश की और मृत्यु ने उसको निगल लिया। (समाप्त)
दिवाली भी शुभ है और दीवाली भी शुभ हो
4 weeks ago