Saturday, October 25, 2008

आगरा और संजय गाँधी-2

श्री गांधी चाहते थे कि दिल्ली से आगरा तक का मार्ग सैलानियों के लिहाज से विकसित किया जाए। उन्हीं के सोच से फरीदाबाद में मेगपाई और बल्लभगढ़ से आगे डेवचिक जैसे मोटेल बनाए गए। उनकी इच्छा थी कि सैलानी दिल्ली से सडक़ के रास्ते करीब दो घंटे में आगरा पहुंच सके और शाम होते-होते दिल्ली वापस पहुंच जाए। संजय गांधी ने इसी तर्ज पर दिल्ली में भी कुछ कठोर फैसले लिए थे जिन्हें क्रियान्वित करने में आज के भाजपा सांसद और तब के ले. गवर्नर जगमोहन को भारी आलोचना और विवादों का सामना करना पड़ा था। मेरे विचार से संजय गांधी को दो बातों ने बहुत नुकसान पहुंचाया- एक, चापलूसों का जमावड़ा और दूसरा, मीडिया से दूरी; अन्यथा कौन कह सकता है कि देश के लिए लगातार बेहिसाब बढ़ती आबादी समस्या नहीं बन रही है या शहरों के जनजीवन को अतिक्रमण अथवा एन्क्रोचमेंट ने एकदम पंगु नहीं बना दिया है। बहरहाल, यहां श्री गांधी से संबंधित एक बेहद रोचक किन्तु सत्य संस्मरण ब्लॉगप्रेमियों के लिए दिलचस्प होने के साथ-साथ उनकी सीमाओं पर भी रोशनी डालने में समर्थ है। ये बात जनवरी, 1976 की है। श्रीमती इंदिरा गांधी आपात्ïकाल की घोषणा के बाद पहली बार अपने पूरे परिवार के साथ दिल्ली से बाहर निकली थीं। पहले यह परिवार डीग (भरतपुर) के जलमहल देखने पहुंचा। सर्दी काफी थी। डीग के राजा द्वारा जलमहल का निर्माण बड़े ही खूबसूरत अंदाज में कराया गया है। जलमहल एक विशाल बगीचे में स्थित में है। विशिष्टï अतिथि संगमरमर से बने सरोवर के चारों ओर बैठते हैं और उसके एक मंजिल ऊपर एक ऐसे हौद का निर्माण किया गया है जिसमें चारों ओर ऐसे बड़े-बड़े मोखले बने हुए हैं जिनमें कपड़े में बांधकर रंग की पोटलियां रख दी जाती हैं। खास मेहमानों के जमा हो जाने के बाद ऊपर की मंजिल पर हौद के पानी को बहने के लिए खोल दिया जाता है। जब यह पानी तरह-तरह के रंगों के साथ गिरता है तो बेहद खूबसूरत लगता है। करीब दो घंटे तक रुकने के बाद गांधी परिवार यहां से भरतपुर के लिए रवाना हुआ और रात करीब 7.30 बजे केवलादेव घना (भरतपुर के पक्षी अभयारण्य) के गेस्ट हाउस विश्राम के लिए पहुंचा। अगले दिन श्रीमती गांधी सुबह पौने छह बजे ही पक्षी विशेषज्ञ श्री सालिम अली को लेकर पक्षियों को निहारने निकल पड़ीं। लगभग सवा सात बजे वह लौटीं और पुन: करीब आठ बजे परिवार के बाकी सदस्यों को लेकर विदेशी परिन्दों को देखने निकल गईं। गांधी परिवार का यह दौरा नितांत निजी था। मैं हॉटिकल्चर के एक कर्मचारी के रूप में इस दौरे में शमिल हो पाया था। लेकिन घना पक्षी विहार में आईबी के गुप्तचरों ने ताड़ लिया कि मैं हॉटिकल्चर का नहीं, कोई अन्य व्यक्ति हूं। उन्होंने घेरे में ले लिया। लगभग तीन घंटे उसी तरह रखा। जांच-पड़ताल से मेरी असलियत का पता चला तो श्रीमती गांधी परिवार के लौट आने के बाद मुझे मुक्त भी कर दिया और जाने दिया। यह ऐसा निजी दौरा था जिसमें कोई भी रिपोर्टर वीआईपी परिवार के साथ नहीं था। पहले दिन की खबर मैंने श्री हरद्वारी लाल शर्मा (भरतपुर के संवाददाता) के हाथों रात को ही भेज दी थी और उसे पहले पेज पर काफी प्रमुखता के साथ छापा गया था। पक्षियों के अवलोकन की खबर के लिए श्री सालिम अली से बात करनी पड़ी और राजस्थान सूचना विभाग के अधिकारी श्री हर्षवर्धन ने इसमें विशेष सहयोग दिया। हम लोग सर्किट हाउस में ठहरे थे। दोपहर करीब तीन बजे किसी सूत्र से मालूम हुआ कि शाम को संजय गांधी की भरतपुर शहर में सभा है। (जारी)

1 comment:

Udan Tashtari said...

जारी रहिये!!

आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.