Friday, October 24, 2008

आगरा के उद्घारकर्ता
आज का यह संस्मरण मैं अतिरिक्त साहस और क्षमायाचना के साथ लिखना चाहता हूं। कारण है इसका एक ऐसी शख्सियत से जुड़ा होना जो अपने जीवित रहते तरह=तरह की किंवदंतियों और विवादों के केंद्र बिदु बन गए थे। यदि आगरा के सीमित संदर्भ में देखें तो उन्होंने इस दबे=सिकुड़े शहर को चलने=फिरने लायक बना दिया और इसके लिए उस वक्त खूब ही गालियां तथा बद्ïदुआएं बटोरीं। संजय गांधी एक अनोखे व्यक्ति थे। हमारे आदरणीय और अंग्रेजी के जाने=माने लेखक=पत्रकार श्री खुशवंत सिंह उनके प्रशंसक रहे हैं। श्री गांधी के साथ श्री सिंह के व्यक्तिगत संबंध रहे, लेकिन मेरे निजी संबंध उनके साथ नहीं बने। शायद इसलिए कि मैंने उन्हें हमेशा एक जि²ी, कानून को न मानने वाले और मनमानी करने वाले सत्ताधारी लाड़ले के रूप में ही व्यवहार करते पाया। शायद वे कभी किसी के लिए भी प्रेरणास्पद नहीं बन सके। हालांकि अपनी इन्हीं 'विशेषताओं ' की बदौलत उन्होंने आगरा को इस लायक बना दिया कि आज शहर की मुख्य सडक़ महात्मा गांधी मार्ग से अधिक कठिनाई के बिना गुजरा जा सकता है। इसके लिए उनके आदेश पर तब के कमिश्नर श्री के. किशोर और एडमिनिस्ट्रेटर श्री अनादिनाथ सेगल ने तमाम कानूनों को धता बताकर दर्जनों मकानों, कोठियों और बस्तियों को मजबूरी में तुड़वाया और नगरवासी मीसा (मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट) के चलते इतने भयग्रस्त रहे कि कोई भी इस तोडफ़ोड़ के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाने की जुर्रत न कर पाया। संजय गांधी के लिए उस समय स्टेट्ïसमैन और बाद में एक=दो दूसरे अंग्रेजी अखबार भी ईसीए (एक्स्ट्रा कंस्टीट्ïयूशनल अथॉरिटी या संविधानेतर शक्ति) विशेषण का प्रयोग करते थे। लेकिन जो भी कहा जाए, यह संजय गांधी का ही प्रताप था कि उन्होंने लगातार योजनाविहीन ढंग से बढ़ते=फैलते आगरा शहर के बीचोंबीच आ गए केंद्रीय कारागार को हटवाकर मथुरा रोड पहुंचवाया। आज उस स्थान पर सबसे आधुनिक और सुसज्जित बाजार शहर की रौनक बना हुआ है।
ये बातें 1974 से और 1975 के शुरू तक की हैं। संजय गांधी जब आगरा आते थे तो हमेशा यूपी के तब के मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी के साथ कार के द्वारा आते थे। हम आगरा के सर्किट हाउस पहुंचकर उनके आने का इंतजार करते, लेकिन पता लगता कि संजय गांधी बहुत तेज रफ्तार से कार को चलाते हुए ला रहे थे जिससे दो गाडिय़ां रास्ते में बेकार हो गईं। इसीलिए आने में देर हो रही है। उनके आते ही अफरातफरी मच जाती, प्रथम श्रेणी के अफसर भी सामने आने से कतराते। उनके मौखिक आदेश अध्यादेश से ज्यादा अहम होते। उन पर आननफानन में अमल होता। एक दिन तो श्री गांधी की मीटिंग के बाद जब श्री सेगल बाहर आए तो काफी तमतमाए हुए थे। वे कह रहे थे- सस्पेंड करेंगे... क्यों करेंगे... मैंने कौनसी बेईमानी की है, क्या गलत काम किया है, बीस साल से आईएएस हूं, क्या घर की खेती है? ... हुंह, मालिक (श्री सेगल राधास्वामी मत के अनुयायी थे और भगवान में अगाध आस्था रखते थे ) क्या देखता नहीं है,, जब गरीबों के घर उजाडऩे के लिए जाना पड़्ता है, तो मालिक की नाराजी और गरीबों की गालियां तो हम ही खाते हैं। जरा देर बाद श्री किशोर भी उनकी बगल में चुपचाप आ खड़े हुए थे और सिगार के लंबे-लंबे कश खींचे जा रहे थे। अंदर श्री गांधी और श्री तिवारी का उस समय लंच चल रहा था। (जारी )

3 comments:

Anonymous said...

संजय ने उस समय जो कुछ किया वो सिर्फ लानत भेजने लायक है.

तमाम कानूनों को धता बताकर दर्जनों मकानों, कोठियों और बस्तियों को मजबूरी में तुड़वाने वाले और आतंक फैलाने वाले को तो आतंकवादी कहा जा सकता है, आगरे का उद्धारकर्ता कैसे कहा जा सकता है?

संजय के धतकर्मों का खामयाजा कभी न हारने वाले सेठ अचलसिंह को एकदम नये प्रत्याशी के हाथों हार कर भुगतना पड़ा.

kadwakarela said...

Sabse pahle ek Agra wale ko dekh kar achcha laga!!!!!!!!! aab bat Sanjay Gandhi ki media ne sanjay ji ko itna badnam kar diya hai ki jaise unnohne kuch achche kam kabhi kiye hi nahi!!! Maruti 800 ka srey agar kisi ko jata hai to sanjay ko. unhone kuch galat bhi kiya wo desh k liye! CHAMA SHOBHTI USH BHUJANG KO JISKE PAS GARAL HI, USKO KYA JO DANTHEEN VISH RAHIT VEENIT SARAL HO!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

shyam gupta said...

बहुत सही कहा नरेन्द्र ने...